मीरजापुर। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा. जयपी राय ने किसानों को बचाव के साथ नियंत्रण का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि धान की फसल रोपने वाले किसानों से फसल में पर्णच्छद झुलसा रोग के प्रकोप की शिकायत मिल रही हैं। रोग कवक राइजोक्टोनिया के द्वारा उत्पन्न किया जाता है। यह अनुकूल जलवायुवीय परिस्थितियों में उत्पादन आधा कर सकता है। इस तरह की समस्या मिरजापुर में ही नहीं पूरे प्रदेश में देखने को मिल रही है। धान की पैदावार न घटे इसलिए किसान यह उपाय करें।
धान के पत्ते पर धब्बों के रूप में होता है विकसित
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि झुलसा रोग मृदाजनित है। प्रारंभिक लक्षण सामान्यतया पौधे पर खेत में भरे पानी की रेखा पर या उसके ठीक ऊपर पत्ती के आवरण पर गोलाकार, अंडाकार या दीर्घवृत्ताकार, पानी से लथपथ हरे-भूरे रंग के धब्बों के रूप में विकसित होते हैं। बीमारी बढ़ने के साथ धब्बे आकार में बड़े होते जाते हैं। अनेक छोटे धब्बे आपस में मिलकर भूरे से गहरे भूरे रंग के अनियमित किनारों या रूपरेखाओं से घिरे धूसर सफेद केंद्रों वाले बड़े घाव में बदल जाते हैं।
खड़ी फसल में छिड़काव करें
उन्होंने बताया कि झुलसा रोग पर ट्राइकोडर्मा के प्रयोग के माध्यम से रोग का जैविक नियंत्रण भी किया जा सकता है। प्रति हेक्टेयर ढाई किग्रा ट्राइकोडर्मा विरिडी एक प्रतिशत घुलनशील चूर्ण को 500 लीटर पानी में घोल बनाएं। रोपाई के एक महीने बाद 15 दिन के अंतराल पर तीन छिड़काव करना चाहिए। साथ ही संस्तुत रसायनों में डाइफेकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी को 0.05 प्रतिशत (100 लीटर पानी में 50 मिली रसायन) की दर से, फ्लूसिलाजोल 40 प्रतिशत ईसी की 300 मिली मात्रा, हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ईसी की एक लीटर मात्रा, क्रेसोक्सिम-मिथाइल 44.3 प्रतिशत एससी की आधा किलो मात्रा, पाललीआक्सिन डी जस्ता लवण 5 प्रतिशत एससी की 600 ग्राम मात्रा में से किसी एक का 500-750 लीटर पानी में घोल लें। खड़ी फसल में छिड़काव करें।