लखनऊ।74वें संविधान दिवस के अवसर पर यूपीएसआईएफएस ने अपना पहला सार्वजनिक समारोह पुलिस मुख्यालय लखनऊ के चंद्र शेखर आजाद सभागार में आयोजित किया गया। जहां मुख्य रूप से उच्च न्यायालय इलाहाबाद के न्यायमूर्ति, कानूनी विशेषज्ञ, फोरेंसिक विशेषज्ञ, पुलिस अधिकारी सहित तमाम संस्थानों से शिक्षाविद ने कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में “फोरेंसिक सहायताः निष्पक्ष सुनवाई और कानूनी सहायता के अधिकार को सक्षम बनाना” विषय पर विस्तृत परिचर्चा की गयी। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि वरिष्ठ न्यायाधीश एआर मसूदी एवं न्यायाधीश राजीव सिंह ने दीप प्रज्वलित कर किया।
न्याय प्रशासन में फोरेंसिक सहायता की भूमिका पर डाला प्रकाश
इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक निदेशक, डॉ. जीके गोस्वामी, आईपीएस ने संस्थान के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देते हुये फोरेंसिक विज्ञान को कानूनी शिक्षा के साथ विलय करने जैसी विशिष्टताओं पर प्रकाश डाला। डॉ. गोस्वामी ने कहा कि संस्था के अनुरोध पर उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले सत्र से बीएससी फोरेंसिक साइंस एलएलबी 5 वर्षीय एकीकृत डिग्री शुरू करने का निर्णय लिया गया है, जो विश्व में अनूठी पहल है। उन्होंने आगे न्याय प्रशासन में फोरेंसिक सहायता की भूमिका पर भी प्रकाश डाला और बताया कि “फोरेंसिक सहायता” शब्द की उनके द्वारा उत्पत्ति किन कारणों से की गयी तथा उसका वास्तविक अर्थ एवं महत्व क्या है।
जंक-साइंस जैसे गंभीर विषय पर भी विचार रखे
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रो. अनुप सुरेंद्रनाथ, जो प्रोजेक्ट 39-ए के कार्यकारी निदेशक भी हैं, ने भारत में मौत की सजा के आंकड़ों के गंभीर परिणामों पर भी प्रकाश डाला। उनके द्वारा किये गये मौलिक वादों के परीक्षण से पता चला है कि मृत्युदंड के मामलों में लगभग 40 प्रतिशत अभियुक्त बरी हो गए, जो चिंता का विषय है, चूंकि ऐसे मामलों में निर्दोष व्यक्ति को सजा हो जाती है, जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। उन्होंने यह भी कहा कि साक्ष्य की गुणवत्ता के आधार पर ही न्यायालय का कार्य आधारित है। यदि साक्ष्य दूषित होगे तो कोई भी न्यायालय उचित न्याय नहीं कर सकता। उन्होंने “जंक-साइंस जैसे गंभीर विषय पर भी विचार रखे, चूँकि फोरेंसिक विश्लेषण की खराब गुणवत्ता निर्दोषों के साथ अन्याय का कारण बन सकती है।
युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण पर जोर दिया जाए
उन्होंने न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की टिप्पणी “गरीबों के लिए कानूनी सहायता – न कि गरीब कानूनी सहायता” के बारे में भी अवगत कराया। इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने ने कहा कि “गरीबों के लिए फोरेंसिक सहायता, न कि गरीब फोरेसिक सहायता” पर बल देने की आवश्यकता है।संयुक्त राज्य अमेरिका के एक अन्य प्रतिष्ठित पर्यावरण विशेषज्ञ उपेन्द्र गिरि ने ग्रामीण युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण पर जोर दिया और उन्हें नौकरी तलाशने के बजाय उद्यमी बनने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे दूसरे लोगों को रोजगार दे सकें।
ए.वी. राजमौली, आईएएस, सचिव, गृह, यूपी ने मनुष्य के 6 शाश्वत साथियों के परिप्रेक्ष्य में महाभारत ग्रन्थ से एक उदाहरण दिया। उन्होंने किफायती लागत पर वैश्विक ख्याति वाले इस संस्थान के निर्माण के लिए यूपी सरकार की प्राथमिकताओं पर भी प्रकाश डाला और बताया कि इस पचास एकड़ भूमि में बने संस्थान में सरकार द्वारा अभी तक लगभग 250 करोड़ खर्च किया जा चुका है तथा अभी कार्य प्रचलित है।
संस्थान को शिखर पर ले जाने वालाें को किया जाए प्रोत्साहित
रेणुका मिश्रा, आईपीएस (डीजी ट्रेनिंग प्रोन्नति एवं भर्ती बोर्ड, यूपी) ने अपने संबोधन में यूपीएसआईएफएस के पहले बैच को बधाई दी और छात्रों को इस संस्थान को शिखर पर ले जाने और भविष्य में आने वाले छात्रों के लिए प्रेरणा बनने के लिए प्रोत्साहित किया। न्यायमूर्ति राजीव सिंह ने प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया और प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक “धर्मो रक्षति रक्षितः” को उद्धृत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि निष्पक्ष और वैज्ञानिक जांच ही न्याय का अग्रदूत है। उन्होंने डिजिटल अपराध, विशेष रूप से डिजिटल रिकॉर्ड में हेरफेर के बारे में अपनी चिंताओं का विस्तृत उल्लेख किया।
मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति ए. आर. मसूदी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के वरिष्ठन्यायाधीश ने वैज्ञानिक जांच और निष्पक्ष सुनवाई का परस्पर सजीव चित्रण किया। उन्होंने न्याय को आगे बढ़ाने में फोरेंसिक की भूमिका पर जोर देने के लिए कई अदालती मामलों के जीवन्त उदाहरण भी प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति का एक रोगी की भाँति इलाज किये जाने की आवश्यकता है, न कि उन्हें केवलअपराधी के रूप में दण्ड देने से समाज का दायित्व पूर्ण होगा।
फोरेंसिक विज्ञान की महती भूमिका पर प्रकाश डाला
कार्यक्रम के अंत में सतीश कुमार, आईपीएस द्वारा सभागार में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस समारोह में सत्यनारायण साबत, डीजी जेल और सुधार, संजय सिंघल, एडीजी स्थापना, जेएन सिंह, एडीजी, एल. वी. एंटनी देव कुमार, एडीजी, अश्विनी कुमार त्रिपाठी एचजेएस, जिला न्यायाधीश, लखनऊ, प्रोफेसर मनीष गौड़, एकेटीयू तथा चंद्र प्रकाश सहित लखनऊ के अनेक अन्य गणमान्य महानुभावों ने प्रतिभाग किया ।
इस संगोष्ठी में आरोपी और पीड़ित दोनों के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व के अधिकार, निष्पक्ष जांच और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को उत्तरोत्तर बढ़ाने में फोरेंसिक विज्ञान की महती भूमिका पर प्रकाश डाला गया, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है। इस अवसर पर संस्थान के छात्रों ने भी अपने वक्तव्य दिये एवं मंच का भी संचालन उन्ही के द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम को हजारों दर्शकों को लाभान्वित करने के लिए ऑनलाइन स्ट्रीम भी किया गया।