एसएमयूपीन्यूज, ब्यूरो। नए संसद भवन में लोकसभा की कार्यवाही में सरकार ने पहला बिल किया।पहला बिल महिला आरक्षण से जुड़ा है। इसे ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ नाम दिया गया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि महिला आरक्षण बिल का नाम ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ होगा। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश।कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि महिला आरक्षण बिल की अवधि 15 साल होगी। हालांकि ये अवधि बढ़ाने के लिए संसद के पास अधिकार होगा।
महिला आरक्षण बिल की अवधि 15 साल होगी
मेघवाल ने कहा कि इस अधिनियम के पास होने के बाद लोकसभा में महिला सीटों की संख्या 181 हो जाएंगी। लोकसभा में फिलहाल महिला सांसदों की संख्या 82 है।बड़ी बात यह है कि एससी-एसटी वर्ग के लिए कोटा के अंदर कोटा लागू होगा। इसका मतलब है कि 33 फीसदी आरक्षण के अंदर एससी-एसटी में शामिल जातियों को भी आरक्षण की व्यवस्था होगी। यानी लोकसभा में एससी के लिए रिजर्व सीटें 84 हैं, उसका 33 फीसदी होता है 28 सीट। यानी एससी में 28 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी। इसी तरह लोकसभा में एसटी के लिए 47 रिजर्व सीटें हैं, जिनका 33 फीसदी होता है 15 सीट। यानी 15 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा
केंद्रीय कानून मंत्री मेघवाल ने कहा कि महिलाओं को लोकसभा के अलावा अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा।विधानसभा की 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। दिल्ली विधानसभा की 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए होंगी। एससी की 84 रिजर्व सीटों में से 33 फीसदी महिलाओं के लिए होंगी और एसटी की 47 रिजर्व सीटों में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए होंगी।
27 साल से अटका है महिला आरक्षण विधेयक
बता दें कि करीब 27 साल से लंबित महिला आरक्षण विधेयक अटका पड़ा था। महिलाओं को सदन में 33 फीसदी आरक्षण देने से जुड़ा बिल आखिरी बार मई 2008 को संसद में पेश किया गया था। तब की यूपीए सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में महिला बिल को शामिल किया था और इसी वादे को पूरा करते हुए राज्यसभा में 6 मई 2008 को बिल पेश किया गया। फिर 9 मई 2008 को इसे कानून और न्याय से संबंधित स्थायी समिति के पास भेज दिया गया।
स्थायी समिति ने लंबी चर्चा के बाद 17 दिसंबर 2009 को अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की और इसे पास करने की सिफारिश की। 2 महीने बाद फरवरी 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस सिफारिश को अपनी मंजूरी दे दी। हालांकि संसद में समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने इसका जमकर विरोध किया। जिसके बाद यह बिल अटकता चला गया।
लोकसभा से नहीं हो सका था पास
आखिरकार बिल पेश होने के करीब 2 साल बाद संसद की ऊपरी सदन ने 9 मई 2010 को अपने यहां पास कर दिया। लेकिन राज्यसभा के बाद जब यह बिल लोकसभा पहुंचा तो कभी यह बिल यहां पास ही नहीं हो सका।दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस की ओर से इस बिल का समर्थन किया जाता रहा है लेकिन अन्य क्षेत्रीय दलों के भारी विरोध और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग समेत कुछ चीजों पर विरोध के चलते इस पर आम सहमति कभी नहीं बन सकी। साथ ही महिला आरक्षण बिल का विरोध करने वाले दलों की ओर से कहा गया कि इस आरक्षण का फायला सिर्फ शहरी क्षेत्र की महिलाओं को ही मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की फायदा नहीं होगा और उनकी हिस्सेदारी नहीं हो पाएगी।