उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले एक क्षेत्र ऐसा जहां पर दर्जनों गांवों के किसानों को अपने खेतों पर जाने के लिए 35 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। जब जाकर कहीं वह अपने खेतों तक पहुंच पाते हैं। जबकि मजे की बात यह है कि जिन किसानों की हम बात कर रहे है उनके खेत गांव में मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर लेकिन वहां जाने का कोई रास्ता न होने के कारण किसानों को यह परेशानी उठानी पड़ रही है।

किसान पैंटून पुल निर्माण के लिए सांसद, विधायक के लगा रहे चक्कर

जानकारी के लिए बता दें कि फर्रुखाबाद के विकास खण्ड राजेपुर की ग्रामपंचायत चिड़िया महुलिया सहित दर्जनों गांवों के किसानों को 35 किलो मीटर का रास्ता तय करके अपनी खेती करने जाने को मजबूर होना पड़ रहा है। यहां के किसान पैंनटून पुल बनवाने के लिए सांसद, विधायक और प्रशानिक अधिकारियों के दरबार में आये दिन हाजिरी लगाते लगाते थक हार कर विरोध पर उतर आए हैं। कोरे आश्वासन तो मिल रहा लेकिन किसानों की समस्या का कोई निदान अभी तक नहीं किया गया। ऐसे में मजबूर होकर किसानों को अपने खेतों तक जाने के लिये इतना लंबा चक्कर लगाकर अपने खेतों में किसानी करने को जाना पड़ रहा है। जबकि दूरी महज 2 किलोमीटर है।

पिछले साल पैंटून पुल रामगंगा नदी में बाढ़ आने के बाद हटा लिया था

अपनी मांग को लेकर प्रदर्शन करते किसान।

पिछले वर्ष किसानों की समस्याओं को ध्यान रखते हुए महुलिया घाट पर पैंटून पुल का निर्माण हुआ था। किसानों ने सुकून की सांस ली थी कि अब 35 किलोमीटर लम्बा सफर करके किसानी के लिये नहीं जाना पड़ रहा है। लेकिन पिछले कुछ महीनों पहले रामगंगा नदी में बाढ़ के कारण पुल को विभाग ने हटा लिया था और आश्वासन दिया था कि जैसे बाढ़ का पानी कम होगा पुल का निर्माण पुनः कर दिया जाएगा। बाढ़ तो आकर चली गई लेकिन इसके बाद अधिकारियों द्वारा ध्यान नहीं दिया। किसानों ने पुल निर्माण कार्य करने वाले विभाग के चक्कर लगाये, वहां सिर्फ कोरे आश्वासन देकर टरकाया जाने लगा। तो हार थक हारकर जन प्रतिनिधियों का दरवाजा खटखटाया लेकिन सिर्फ कोरे आश्वासन से किसान बेचारा किसान ठहरा उसे तो धरती का सीना चीर कर इन्ही अधिकारियों ओर जनप्रतिनिधियों का पेट जो भरना है। लाचार किसान इतना लम्बा सफर तय करके अपनी जमीन की जुताई बुआई कर फसलों की तैयारियों में जुट गए।

बात मुख्यमंत्री तक पहुंच जाए तो शायद समस्या का निदान हो जाए

फसल की जुताई बुआई के बाद किसानों ने फिर कमर कसी ये सोचकर कि चलो किसी तरह जुताई बुआई तो हो गयी। अब कुछ दिनों बाद फसल मढ़ई होगी तब तक शायद पुल की व्यवस्था हो जाएगी। तो फिर चल पडे़ अधिकारियों ओर जनप्रतिनिधियों के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए। लेकिन नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात वाला ही निकला किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। परेशान किसान जब कभी गांव में आये अधिकारी या मीडिया कर्मियों को देखता है तो उसी की तरफ दौड़ लगा देता ।इस उम्मीद से की शायद हमारा दर्द किसानों के मुख्यमंत्री तक पहुंच जाये और हमारी इस सुरसा की तरह मुंह फाडे़ खड़ी समस्या का शायद निदान हो जाये।

किसानों को 13 वीं किस्त चाहिए तो यह करना न भूले https://smupnews.com/2023/02/if-farmers-want-13th-installment-then-do-not-forget-to-do-this/

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