महाकुम्भ नगर। सनातन आस्था के महापर्व महाकुम्भ की शुरुआत, तीर्थराज प्रयागराज के संगम तट पर पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ शुरू हो गई है। भारत की सांस्कृतिक विविधता में आध्यात्मिक एकता का मनोरम दृश्य संगम तट पर देखने को मिल रहा है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आस्था की डोर में बंधे गंगा, यमुना, सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में अमृत स्नान करने करोड़ों की संख्या में आ रहे हैं।
महाकुम्भ की विशिष्ट परंपरा कल्पवास की भी शुरुआत
इसके साथ ही महाकुम्भ की विशिष्ट परंपरा कल्पवास की भी शुरुआत हो गई है। पद्म पुराण और महाभारत के अनुसार संगम तट पर माघ मास में कल्पवास करने से सौ वर्षों तक तपस्या करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। विधि-विधान के अनुसार लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने संगम तट पर केला,तुलसी और जौं रोपकर एक महा व्रत और संयम का पालन करते हुए कल्पवास की शुरुआत की।
महाकुम्भ में पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ कल्पवास की शुरुआत
तीर्थराज प्रयागराज में माघ मास में कल्पवास करने का विधान है, महाकुम्भ में कल्पवास करना विशेष फलदायी माना जाता है। इसलिये इस वर्ष अनुमान के मुताबिक 10 लाख से अधिक लोग संगम तट पर पूरे एक माह का कल्पवास करेंगे। कल्पवास के विधान और महात्म के बारे में तीर्थपुरोहित श्याम सुंदर पाण्डेय कहते हैं कि कल्पवास का शाब्दिक अर्थ है कि एक कल्प अर्थात एक निश्चित समयावधि में संगम तट पर निवास करना।
पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करने का विधान
पौराणिक मान्यता के अनुसार माघ मास में पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करने का विधान है। श्रद्धालु अपनी शारीरिक और मानसिक स्थित के अनुरूप तीन दिन, पांच दिन, ग्यारह दिन आदि का संकल्प लेकर भी कल्पवास करते हैं। पूरी तरह विधि-विधान से कल्पवास करने वाले साधक बारह वर्ष लगातार कल्पवास कर महाकुम्भ के अवसर पर इसका पारण करते हैं, जो कि शास्त्रों में विशेष फलदायी और मोक्षदायक माना गया है।
पद्म पुराण में है कल्पवास के नियम
कल्पवास को हमारे शास्त्रों और पुराणों में मानव की आध्यात्मिक उन्नति का श्रेष्ठ मार्ग बताया गया है। वस्तुतः कल्पवास को सनातन परंपरा के अनुसार वानप्रस्थ आश्रम से संन्यास आश्रम में प्रवेश का द्वार माना गया है। एक माह संगम या गंगा तट पर विधिपूर्वक कल्पवास करने से मानव का आंतरिक एवं बाह्य कायाकल्प होता है। पद्मपुराण में भगवान दत्तात्रेय ने कल्पवास के 21 नियमों का उल्लेख किया है, जिसका पालन कल्पवासी संयम के साथ करते हैं।
तीनों काल गंगा स्नान करना

जिनमें से तीनों काल गंगा स्नान करना, दिन में एक समय फलाहार या सादा भोजन ही करना, मद्य,मांस,मदिरा आदि किसी भी प्रकार के दुर्व्यसनों का पूर्णतः त्याग करना, झूठ नहीं बोलना,अहिंसा, इन्द्रियों पर नियंत्रण, दयाभाव और ब्रह्मचर्य का पालन करना, ब्रह्म मुहूर्त में जागना,स्नान, दान, जप, सत्संग, संकीर्तन, भूमि शयन और श्रद्धापूर्वक देव पूजन करना शामिल है।
नियम, व्रत और संयम का पालन करते हुए पूरा होगा कल्पवास
पौराणिक मान्यता और शास्त्रों के अनुसार पौष पूर्णिमा के दिन श्रद्धालुओं ने ब्रह्म मुहूर्त में संगम स्नान कर, भगवान शालिग्रमा और तुलसी की स्थापना कर, उनका पूजन किया। सभी कल्पवासियों को उनके तीर्थपुरोहितों ने पूजन करवा कर हाथ में गंगा जल और कुशा लेकर कल्पवास का संकल्प करवाया। इसके साथ ही कल्पवासियों ने अपने टेंट के पास विधिपूर्वक जौं और केला को भी रोंपा।
कल्पवासी पूरे माघ मास केला और तुलसी का पूजन करेंगे
सनातन परंपरा में केले को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। कल्पवासी पूरे माघ मास केला और तुलसी का पूजन करेंगे। तीनों काल में सभी कल्पवासी नियम पूर्वक गंगा स्नान, जप, तप, ध्यान, सत्संग और पूजन करेंगे। कल्पवास के काल में साधु-संन्यसियों के सत्संग और भजन-कीर्तन करने का विधान है। कल्पवासी अपने मन को सांसरिक मोह से विरक्त कर आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग की ओर ले जाता है।
पहले स्नान पर 50 से अधिक मेला स्पेशल ट्रेनों का किया गया संचालन
आस्था के महापर्व,महाकुम्भ 2025 की शुरूआत आज, 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ हो गई। सनातन आस्था का सबसे बड़ा पर्व होने के कारण देश भर से श्रद्धालु महाकुम्भ में स्नान करने प्रयागराज आते हैं। मेला प्रशासन के अनुसार महाकुम्भ के पहले स्नान पर लगभग 1.5 करोड़ श्रद्धालुओं में त्रिवेणी संगम में पुण्य स्नान किया। जिनमें से लाखों की संख्या में श्रद्धालु ट्रेनों के माध्यम से प्रयागराज पहुंचे। प्रयागराज रेल मण्डल ने पहले से की गई तैयारियों के कारण श्रद्धालुओं को ज्यादा दिक्कतों का समना नहीं करना पड़ा। प्रयागराज रेल मण्डल ने यात्रियों की संख्या के मुताबिक शाम 06 बजे तक 50 से अधिक स्पेशल ट्रेनें चलाई।
प्रयागराज जंक्शन से 21 आउटवर्ड और 13 इनवर्ड ट्रेनों का हुआ संचालन

प्रयागराज रेल मण्डल ने श्रद्धालुओं की सुविधा और जरूरत के मुताबिक सुरक्षा, आश्रय, आसान टिकट वितरण एवं बड़ी संख्या में गाड़ियों की व्यवस्था की गयी है । महाकुंभ में आए श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुये रेल प्रशासन द्वारा पौष पूर्णिमा पर्व के अवसर पर शाम 06 बजे तक 50 से अधिक मेला स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया गया। इनमें से 21 आउटवार्ड और 13 इनवर्ड ट्रेनों का संचालन किया गया। प्रयागराज जंक्शन से 7 स्पेशल ट्रेनें 01 ट्रेन कानपुर के लिए, 03 पंडित दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन के लिए, 01 गाड़ी कटनी, 01 गाड़ी वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी और 01 गाड़ी अयोध्या कैंट के लिए के लिए चलायी गयी।
श्रद्धालु के लिए आश्रय स्थलों, टिकट घरों का हुआ सफल संचालन
प्रयागराज छिवकी स्टेशन से बांदा स्टेशन के लिए 1 स्पेशल मेला ट्रेन चलाई गई। तो वहीं नैनी स्टेशन से 1 स्पेशल ट्रेन चित्रकूट के लिए और प्रयाग स्टेशन से 02, लखनऊ से 1, आलमनगर से 1, अयोध्या से 3 और 4 रिंग रेल ट्रेनों का संचालन किया गया| इसके बाद भी प्रयागराज रेल प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं की आवश्यकता के अनुरूप रात्रि में और भी स्पेशल ट्रेनों का संचाल किया गया| इसके अतिरिक्त श्रदधालुओं को आश्रय स्थलों में रहने, ठहरने और टिकट घर की भी व्यवस्था का सुचारू रूप से संचालन किया गया।