महाकुम्भनगर। अरैल घाट में शुक्रवार को दिव्य संगम महाआरती का भव्य आयोजन हुआ। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज के सानिध्य में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक की उपस्थिति में आरती के महाअनुष्ठान का शुभारम्भ हुआ।
कुम्भ का यह संगम विभिन्न संस्कृतियों के मिलन का केन्द्र
स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने इस अवसर पर कहा कि आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह आत्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरण और सामाजिक चेतना के जागरण का एक उत्कृष्ट माध्यम भी है। आरती के माध्यम से हम न केवल आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं, बल्कि इससे समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता भी आती है।
उन्हाेंने कुम्भ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कुम्भ केवल सनातन धर्म का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व के लिए एक दिव्य पर्व है। कुम्भ का यह संगम विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, और विचारधाराओं के मिलन केन्द्र है। यह भक्ति की शक्ति का अद्भुत दर्शन है, जो सभी को एकजुट करने का कार्य करता है।
इस पर्व को पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाएं
उन्हाेंने यह भी कहा कि कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ने, पर्यावरण की रक्षा करने और प्राकृतिक आपदाओं की शांति के लिए भी समर्पित है। उन्होंने उपस्थित जनसमूह से आह्वान किया कि हम सब मिलकर इस पर्व को पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाएं, ताकि यह आयोजन सफल और सम्मानजनक रूप से सम्पन्न हो। यह मेला भारत की समृद्ध संस्कृति और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है, जो पूरे देश और दुनिया भर के लोगों को एकजुट करता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस महाआरती से हम सभी को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होता है।
मनुष्य धन से नहीं अपितु विचारों से बनता है बड़ा: अवधेशानन्द
मनुष्य धन से नहीं, अपितु विचारों से बड़ा बनता है। जीवन अलभ्य अवसर है, मनुष्य जीवन अंतहीन संभावनाओं से परिपूर्ण है। मनुष्य इस धरा की सर्वोत्तम कृति है। यह बात शुक्रवार को महाकुम्भ क्षेत्र के सेक्टर 18 में अन्नपूर्णा मार्ग झूंसी में प्रभु प्रेमी संघ कुम्भ शिविर में कथा के पांचवे दिन भक्तों को सम्बोधित करते हुए जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने कही।
साधकों को निरन्तर सत्कर्म परायण रहना चाहिए
उन्होंने कहा कि साधकों को निरन्तर सत्कर्म परायण रहना चाहिए। मनुष्य के पास स्मृतियों का अपार कोश है, किन्तु इन अंतहीन स्मृतियों में प्रायः हमारे अनुभव जगत के ही हैं। सांसारिक भोग के अनुभव हमें क्षणिक सुख तो देते हैं, किन्तु शाश्वत आह्लाद और माधुर्य की संप्राप्ति भगवान की स्मृति से ही होती है।
ईश्वर का अनुभव आनन्द का अनुभव है और यह हमें निर्द्वंद और निर्भरता प्रदान करता है।उन्होंने कहा कि हमारी विचार शक्ति ही तो हमें अन्य प्राणियों से पृथक और श्रेष्ठ बनाती हैं इसलिए अच्छे विचारों के साथ रहें। और, अच्छे विचार हमें सत्संग तथा स्वाध्याय से प्राप्त होंगे। दुर्बलता के अनेक रूप हैं, किन्तु उनमें सबसे बड़ी दुर्बलता है – वैचारिक दुर्बलता। जो विवेक, विचार और ज्ञान से हीन है, वही सबसे कमजोर है।