लखनऊ । यूपी के सबसे बड़ा चिकित्सा प्रतिष्ठान केजीएमयू के लारी कार्डियोलॉजी में इलाज को आने वाले मरीजों का सिस्टम की लापरवाही का शिकार होने कोई नई बात नहीं है। यहां हृदय रोग विभाग (लारी कार्डियोलॉजी) में सोमवार को दुबग्गा के छंदोइया निवासी अबरार अहमद (60) को वेंटिलेटर नहीं मिल पाया। अबरार हाथ जोड़कर वेंटिलेटर के लिए मिन्नतें करते रहे। इस पर भी डॉक्टर नहीं पसीजे। उन्हें डॉ. राममनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान रेफर कर दिया गया। रास्ते में ही अबरार की सांसें थम गईं। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।

लारी की इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था मरीज, वेंटिलेटर की थी जरूरत

अबरार अहमद की वर्ष 2018 में लारी में ही एंजियोप्लास्टी हुई थी। हालत खराब होने पर रविवार रात करीब 12:30 बजे उनको उनको लारी की इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। यहां पर डॉक्टरों ने उनकी हालत गंभीर होने की बात कहते हुए वेंटिलेटर की जरूरत बताई। साथ ही वेंटिलेटर खाली नहीं होने की बात कहते हुए उनको लोहिया संस्थान या फिर पीजीआई जाने के लिए कहा। परिवारवालों ने इतना समय नहीं होने की बात कहते हुए डॉक्टरों से मिन्नतें कीं। अबरार के बेटे सैफ के मुताबिक पिता भी हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन डॉक्टर नहीं पसीजे।

मरीज की मौत के बाद वजीरगंज थाने में कार्रवाई के लिए तहरीर दी

मायूस होकर हम पिता को लेकर लोहिया संस्थान गए। रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।सैफ के मुताबिक इमरजेंसी में उनके पिता को तीन-चार इंजेक्शन लगाए गए। इसके बाद उनकी नाक और मुंह से खून आने लगा। पिता के गिड़गिड़ाने पर डॉक्टर बोले ज्यादा शोर कर रहे हो, इसलिए नहीं देखेंगे। मरीज की मौत के बाद वजीरगंज थाने में कार्रवाई के लिए तहरीर भी दी गई है। केजीएमयू के प्रवक्ता प्रो. सुधीर सिंह के मुताबिक अबरार अहमद को दिल की गंभीर बीमारी थी। वर्ष 2018 में कोरोनरी आर्टरी डिजीज की पुष्टि होने के बाद उनकी एंजियोप्लास्टी की गई थी।

लारी कार्डियोलॉजी के सभी आईसीयू-वेंटिलेटर बेड फुल थे

एंजियोप्लास्टी के बाद डॉक्टर ने समय-समय पर उन्हें जांच के लिए बुलाया था, लेकिन वे फॉलोअप के लिए ओपीडी में नहीं आए।रविवार देर रात तबीयत बिगड़ने पर मरीज को हार्ट फेल्योर की गंभीर अवस्था में इमरजेंसी में लाया गया। जहां डॉक्टरों ने तुरंत भर्ती कर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा। जरूरी जांचें कराई गईं। हालत गंभीर होने की वजह से डॉक्टरों ने वेंटिलेटर की जरूरत बताई। लारी कार्डियोलॉजी के सभी आईसीयू-वेंटिलेटर बेड फुल थे। इसलिए उन्हें पीजीआई और लोहिया संस्थान के लिए रेफर किया गया। मरीज को ले जाने के लिए संस्थान ने एंबुलेंस भी उपलब्ध कराई, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी जान नहीं बचाई जा सकी।

यहां पर अक्सर फुल रहते हैं बेड, नहीं मिलता वेंटिलेटर

जानकारी के लिए बता दें कि लारी में राजधानी समेत प्रदेश के अन्य शहरों से भी मरीज रेफर होकर आते हैं। यहां पर 80 बेडों की क्षमता है, जबकि करीब 9 वेंटीलेटर हैं। वहीं, 12 फैकल्टी और करीब 22 रेजिडेंट्स हैं। इमरजेंसी में रोजाना 100 से अधिक मरीज आते हैं। इसमें 20 के करीब एक्यूट हार्ट अटैक और 5-6 मरीज पेसमेकर वाले होते हैं बाकि अन्य इमरजेंसी वाले होते हैं, जिसके चलते यहां की इमरजेंसी समेत सभी बेड अकसर फुल ही रहते है। जिसकी वजह से इसका खामियाजा यहां आने वाले मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। ठंड के दिनों में हार्ट की समस्या बढ़ जाती है। इसके बाद भी बेड व वेंटिलेटर बढ़ाने की तरफ चिकित्सा संस्थान प्रशासन द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

चिकित्सक व नर्स पर रहता है काफी लोड

बता दें कि लारी में वेंटीलेटर के लिए हमेशा मारा-मारी रहती है, ठंड के दिनों में तो हालात और ही खराब हो जाती है। एेसे में लोग ऊपर तक जुगाड़ लगाते हैं, जिसके चलते सभी डॉक्टर्स हमेशा ओवरलोड रहते हैं। उनके ऊपर मरीजों का बेहद दबाव रहता है। छोटे सेंटर्स को अपग्रेड किया जाये और सही रेफरल पॉलिसी बने तो मरीजों के साथ डॉक्टर्स को भी राहत मिलेगी। बेडों की संख्या सीमित होती है। हर मरीज को भर्ती करना आसान नहीं है, पर इसके बावजूद मरीजों को देखा जाता है। हालांकि मरीज के परिजनों का आरोप है कि बेड व वेंटिलेटर खाली होने के बाद भी नहीं दिया जाता है।

आराेप, बस जुगाड़ व पहुंच वालों की केजीएमयू में मिलती है मदद

बस केजीएमयू में जुगाड़ वालों की सुनवाई होती है। यह कोई न मामला नहीं है। इस तरह के केस हर दिन आते है और उन्हें बगैर उपचार के लिए मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों का सहारा लेना पड़ रहा है । विभाग के मंत्री द्वारा सिर्फ चिकित्सा सुधार के नाम पर बड़े -बड़े दावे किये जा रहे है लेकिन वास्तविक हकीकत यही है कि केजीएमयू जैसे बड़े संस्थान में मरीज के पहुंचने के बाद वेंटिलेटर व बेड के अभाव में मरीज की मौत हो जाए तो यह चिकित्सा महकमा के लिए डूब मरने की बात है। चूंकि सरकार द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में बेहतर हुआ है का दावा तो किया जा रहा है लेकिन हकीकत एकदम से उलट है।

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