हमीरपुर। झांसी मेडिकल कॉलेज में हाल ही में लगी आग के दौरान हमीरपुर के राठ तहसील के रहने वाले याकूब ने अपनी जान जोखिम में डालकर 7 नवजातों की जान बचाई। लेकिन इस बहादुरी के बावजूद वह अपनी जुड़वां बेटियों को नहीं बचा सका। इस घटना ने हर किसी का दिल झकझोर दिया।

याकूब ने बताया, उस वक्त सिर्फ मासूमों को बचाने की सोच थी

याकूब, जो राठ कस्बे के सिकंदरपुरा इलाके में ठेला लगाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता है, अपनी बेटियों के इलाज के लिए झांसी मेडिकल कॉलेज में था। बीते 9 नवंबर को उसकी पत्नी नजमा ने जुड़वां बेटियों को जन्म दिया था। सांस लेने में दिक्कत के कारण दोनों बच्चियों को एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया था।

आग लगने की खबर सुनकर याकूब ने बिना समय गंवाए अपनी मां बिल्किस और साले सोनू के साथ वार्ड की खिड़की तोड़ी और अंदर घुस गया। मुंह पर कपड़ा बांधकर उसने एक-एक कर सात नवजातों को सुरक्षित बाहर निकाला। याकूब ने बताया, उस वक्त सिर्फ मासूमों को बचाने की सोच थी। यह नहीं देखा कि उनमें मेरी बेटियां हैं या नहीं। जब अपनी बच्चियों का ख्याल आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

पूरी रात अपनी बेटियों को ढूंढने की कोशिश की

आग बुझने के बाद भी याकूब और उसकी पत्नी नजमा ने पूरी रात अपनी बेटियों को ढूंढने की कोशिश की। लेकिन अगले दिन शवों की शिनाख्त हुई, तब पता चला कि जुड़वां बेटियां अब इस दुनिया में नहीं रहीं। याकूब के साहसिक कार्य से जहां लोग गर्व महसूस कर रहे हैं, वहीं उसकी बेटियों की मौत से सभी गमगीन हैं।

याकूब की बहादुरी की चर्चा पूरे इलाके में हो रही है। लेकिन एक पिता का दर्द और बेटियों को खोने का गम उसकी आंखों में साफ झलक रहा है। स्थानीय लोग इस घटना को लेकर अस्पताल प्रशासन पर सवाल उठा रहे हैं। आग लगने के समय सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम न होने और वार्ड में अलर्ट सिस्टम के काम न करने को लेकर आक्रोश है।

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