लखनऊ। राजधानी लखनऊ के डाॅ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में पहली बार बॉम्बे ब्लड ग्रुप के मरीज की पहचान हुई है। लोहिया संस्थान के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुब्रत चंद्रा द्वारा बताया गया कि बॉम्बे ब्लड ग्रुप भारत में दस हजार व्यक्तियों में से किसी एक को पाया जाता है।
रायबरेली से रेफर होकर आयी थी गर्भवती
यूरोपीय तथा विकसित देशों में 10 लाख में से एक इसमें एचएच एक ही एंटीजन (एच) लाल रक्त कणिकाए पाया जाता हैं, जिससे यह एबीओ ग्रुप से अलग होता है जिस कारण इसके मरीज को केवल एचएच बॉम्बे ब्लड ग्रुप का ही रक्त लिया या दिया जा सकता है।डाॅ. राम मनोहर लोहिया संस्थान में राखी (बदला हुआ नाम) उम्र 25 वर्ष, महिला प्रसव के 40 हफ्ते 6 दिन के बाद रायबरेली से रेफर होकर राम मनोहर लोहिया संस्थान आई।
मरीज का हीमोग्लोबिन 5.1 पाया गया
राखी पेशाब में खून आने की, सांस का फूलना तथा शिशु का गर्भ में कम घूमने की शिकायत के साथ संस्थान में आई। इसके बाद मरीज के खून का नमूना ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में आया जिसकी विस्तृत जांचों के बाद बाम्बे ब्लड ग्रुप में चिन्हित किया गया, क्योंकि यह अनुवांशिक होता है। इस मरीज को केवल यही रक्त का ग्रुप दिया जा सकता है। मरीज का हीमोग्लोबिन 5.1 पाया गया। इसके पश्चात विभाग द्वारा मरीज के पूरे परिवार की खून के नमूने की विस्तृत जांच की गई। मरीज के भाई का भी बॉम्बे ब्लड ग्रुप पाया गया। मरीज को उसके भाई का रक्त दिया गया। मरीज प्रसव उपरान्त अब सुरक्षित है।
क्या है बॉम्बे ब्लड ग्रुप
डॉक्टरों के मुताबिक बॉम्बे ब्लड ग्रुप एक दुर्लभ रक्त समूह है, जो भारत में लगभग 10,000 में से एक में पाया जाता है। इसे सबसे पहले 1952 में बॉम्बे, भारत में डॉ. भेंडे ने खोजा था।यह एच जीन के बिंदु उत्परिवर्तन के कारण होता है। यदि रोगी में दो उत्परिवर्ती जीन (एच जीन) हैं, तो इसका परिणाम बॉम्बे या ओह फेनोटाइप होगा।बॉम्बे ब्लड ग्रुप को hh ब्लड ग्रुप के रूप में भी जाना जाता है। यह ब्लड ग्रुप बहुत ही दुर्लभ होता है।
भारत में 10,000 लोगों से किसी एक का ये ब्लड ग्रुप हो सकता है
बॉम्वे ब्लड ग्रुप की ख़ास बात यह होती है कि इसमें लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर Aऔर B दोनों एंटीजन नहीं होते है। जिसकी वजह से बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति H एंटीजन का उत्पादन करने में असमर्थ हो जाते हैं, जो A,B और O ब्लड ग्रुपिंग सिस्टम के लिए जरूरी होता है। Bombay Blood Group को hh ब्लड ग्रुप या Oh फेनोटाइप के रूप में भी जाना जाता है। दुनियाभर में hh ब्लड ग्रुप 4 मिलियन में से एक का होता है, वहीं भारत में 10,000 लोगों से किसी एक का ये ब्लड ग्रुप हो सकता है।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन में होने वाली समस्याएं
इस ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति सिर्फ दूसरे बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले से ही ब्लड ले सकते हैं। इसलिए इस ब्लड ग्रुप का जो भी व्यक्ति ब्लड डोनेट करता है, उसे स्टोर कर लिया जाता है। किसी दूसरे ग्रुप का खून चढ़ाने पर बॉम्बे ब्लड ग्रुप के मरीज की जान खतरे में आ सकती है। क्योंकि बॉम्बे ब्लड ग्रुप बहुत दुर्लभ है, इसलिए डोनर को ढूंढना बेहद मुश्किल हो सकता है।
ब्लड टाइप का महत्व
लोगों को अपना ब्लड ग्रुप पता होना चाहिए, खासकर अगर उनका ब्लड ग्रुप बॉम्बे है, क्योंकि यह इमरजेंसी स्थिति या सर्जरी के मामले में इलाज को बहुत प्रभावित कर सकता है। ब्लड टाइप टेस्ट लाल रक्त कोशिकाओं पर A, B और H एंटीजन की उपस्थिति निर्धारित कर सकते हैं, जिससे हेल्थकेयर प्रोफेशनल उचित देखभाल प्रदान कर सकते हैं।
क्लीनिकल जरूरतें
बॉम्बे ब्लड ग्रुप की दुर्लभता के कारण इस ब्लड ग्रुप वाले व्यक्तियों को जरूरत पड़ने पर ब्लड प्रोडक्ट्स तक पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को इस दुर्लभ ब्लड टाइप के बारे में जागरूक होना चाहिए और बॉम्बे ब्लड ग्रुप के मरीजों के मैनेजमेंट के लिए प्रोटोकॉल रखना चाहिए।