लखनऊ। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नौ राज्यपालों की नियुक्ति की, जिसमें उत्तर प्रदेश के दो वरिष्ठ राजनेताओं को अलग-अलग राज्यों में राज्यपाल बनाया गया। उत्तर प्रदेश के बरेली से भाजपा से कई बार सांसद रहे संतोष गंगवार को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया है तो वहीं अभी तक सिक्किम के राज्यपाल रहे लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को असम का राज्यपाल बनाया गया है।

लक्ष्मण आचार्य पर मणिपुर के राज्यपाल का भी चार्ज दिया गया है। लक्ष्मण आचार्य यूपी के वाराणसी क्षेत्र के रामनगर के रहने वाले हैं। संतोष गंगवार और लक्ष्मण आचार्य दोनों ही भाजपा की संगठन रचना से निकले हुए चेहरे हैं और पार्टी में प्रमुख दायित्व का निर्वहन किया है।

संतोष गंगवार को राज्यपाल बनाने पर बरेली में हर्ष का माहौल

आठ बार के सांसद रहे संतोष गंगवार को झारखण्ड का राज्यपाल बनाये जाने पर बरेली के लोगों में खुशी व हर्ष का माहौल है। वह बरेली से आठ बार सांसद रह चुके हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में उनकी उम्र का हवाला देते हुए पार्टी हाईकमान ने उनका टिकट काट दिया था । 2 मई को हार्टमैन रामलीला ग्राउंड के मंच से गृह मंत्री अमित शाह ने संतोष गंगवार को नई जिम्मेदारी देने की बात कही थी। अब उनकी वह बात सही साबित हुई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देवचरा में हुई जनसभा में उनकी नई भूमिका को लेकर संकेत दिए थे। संतोष कुमार गंगवार कुर्मी बिरादरी के बड़े नेता हैं। वर्ष 1948 में जन्में और बरेली कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ ही एलएलबी की उपाधि हासिल करने वाले संतोष गंगवार का चुनावी सफ़र 1984 से शुरू हुआ था।

2014 व 2019 में वह फिर चुनाव लड़े और जीत हासिल की

हालाँकि 1984 में पहला चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार आबिदा बेगम से हार गए थे । इसके बाद 1989 में वह फिर से लोक सभा चुनाव लड़ें और जीत हासिल कर पहली बार सांसद बने । इसके बाद वर्ष 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 में लगातार जीत का सेहरा उन्हीं के सिर सजा । उनकी पहचान कुर्मी बिरादरी के प्रभावशाली नेता के रूप में हैं हालाँकि वह सभी वर्गों में लोकप्रिय हैं वर्ष 2009 में कांग्रेस से प्रवीण सिंह ऐरन ने उनका विजय रथ रोका । इसके बाद 2014 व 2019 में वह फिर चुनाव लड़े और जीत हासिल की ।

अनुशासित सिपाही होने का मिला फल

बेदाग व जनप्रिय रहते हुए लंबा सियासी सफर तय करने वाले संतोष गंगवार भाजपा से सदैव अनुशासित सिपाही के रूप में जुड़े रहे। आठ बार सांसद रहने और कोई बड़ा विरोध न होने के बावजूद पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट काटे जाने पर भी वह विचलित नहीं हुए थे। पिछले दिनों उनकी पत्नी सौभाग्यवती गंगवार का भी निधन हो गया था। इसके बावजूद वह सार्वजनिक व सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे। पार्टी के कार्यक्रमों में भी बराबर से सहभागिता की। उनकी पहचान आज भी सर्व सुलभ नेता के रूप में है।

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