लखनऊ । मदर्स डे वह दिन जब दुनिया भर में मां के प्यार, त्याग और ममता को सम्मान देने की बातें होती हैं। बच्चे अपने-अपने तरीके से मां को उपहार देकर, उनके लिए समय निकालकर यह जताने की कोशिश करते हैं कि उनकी जिंदगी में मां का क्या स्थान है। लेकिन इसी दिन लखनऊ में एक ऐसी घटना सामने आई जिसने न केवल इस दिन को शर्मसार कर दिया, बल्कि इंसानियत को भी कटघरे में खड़ा कर दिया।

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बुजुर्ग महिला की हालत देखकर राहगीरों की आंखें नम हो गईं

रविवार की सुबह गोमतीनगर विस्तार क्षेत्र के पास कुछ राहगीरों ने सड़क किनारे बैठी एक बुजुर्ग महिला को देखा। महिला बेहद कमज़ोर थी, उसके कपड़े धूल से सने हुए थे और आंखों में थकी हुई सी एक उम्मीद थी — कि शायद उसके बेटे उसे लेने आ जाएंगे। भीषण गर्मी में बिना कुछ खाए-पिए बैठी उस महिला की हालत देखकर राहगीरों की आंखें नम हो गईं।

कुछ लोगों ने पानी पिलाया, किसी ने छांव में बैठाया

स्थानीय लोगों ने बिना देर किए पुलिस को सूचना दी और 112 नंबर पर कॉल किया। कुछ लोगों ने पानी पिलाया, किसी ने छांव में बैठाया। इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए लोगों ने बुजुर्ग महिला के लिए जो कुछ हो सका, किया।पुलिस मौके पर पहुंची और महिला से बातचीत की तो उसकी खामोशी में बहुत कुछ छिपा था। जब पुलिसकर्मियों ने उसका नाम और घर के बारे में पूछा, तो वह रुंधे गले से बस इतना कह सकी — “मेरे बेटे… दिनेश और राजेश।” इसके बाद आंखों से बहते आंसू ही उसके जवाब थे।

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मदर्स डे के दिन उसके बेटों ने उसे घर से बाहर निकाल दिया

महिला ने बताया कि मदर्स डे के दिन उसके बेटों ने उसे घर से बाहर निकाल दिया। कह दिया कि अब वह उनके किसी काम की नहीं। उसे एक वाहन में बैठाकर यहां छोड़ दिया गया और दोनों बेटे चले गए। एक मां के लिए इससे बड़ा दुख और क्या हो सकता है कि जिन बच्चों को उसने पाल-पोसकर बड़ा किया, वही आज उसे बोझ समझकर छोड़ गए।पुलिस ने महिला को प्राथमिक चिकित्सा दिलाई और बेटों की तलाश में जुट गई है और उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की तैयारी हो रही है।

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इस घटना ने समाज को एक बार फिर आइना दिखा दिया

इस घटना ने समाज को एक बार फिर आइना दिखा दिया है — कि जब बुजुर्ग माता-पिता को बोझ समझा जाने लगे, तो हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं? क्या आधुनिकता के नाम पर संवेदनाएं खत्म होती जा रही हैं?लेकिन इसी समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस दुखद घटना पर अपनी इंसानियत दिखाकर आशा की एक किरण जगा दी। राहगीरों ने जो संवेदनशीलता दिखाई, वह आने वाली पीढ़ियों को एक ज़रूरी सबक देती है — मां सिर्फ एक दिन की नहीं होती, वह हर दिन आदर और सेवा की हकदार होती है।

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