मुरादाबाद। आपको जानकर और सुनकर हैरानी होगी लेकिन यह सत प्रतिशत सत्य है। देशभर के लोगों को हिंदी मुरादाबाद के ककहरे ने सिखाई थी। वर्ष 1915 में मुरादाबाद के मास्टर रामकुमार द्वारा मात्र एक पैसे से प्रकाशित हिंदी सचित्र प्राइमर (रामकुमार का कायदा) की लोकप्रियता इस कद्र थी कि देश में करीब 18 करोड़ प्रतियां बिकी हैं। हालांकि वक्त के साथ घटते रुझान की वजह से पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1997 में बंद हो गया।

वर्ष 1997 में पुस्तक की कीमत डेढ़ रुपये थी

मंडी बास के जीलाल मोहल्ला निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मास्टर रामकुमार ने अमरोहा गेट पर अपनी दस फीट चैड़ी और 20 फीट लंबी दुकान में लेटर प्रेस पर 24 पृष्ठों की काले पन्नों वाली इस किताब का प्रकाशन एक पैसे की कीमत में शुरू किया था। बाद में पुस्तक को ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस रामकुमार प्रेस एंड एलाइड इंडस्ट्रीज पर प्रकाशित किया जाता था। वर्ष 1997 में पुस्तक की कीमत डेढ़ रुपये थी। बेहद सरल ढंग से हिंदी के अक्षरों, मात्राओं का ज्ञान कराने और सबसे ज्यादा सस्ती होने के कारण देशभर से इसकी मांग आती थी।

रामकुमार खुद उर्दू भाषा से पढ़े थे और फारसी भाषा के जानकार थे

मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डा. मनोज रस्तोगी ने बताया कि मास्टर रामकुमार खुद उर्दू भाषा से पढ़े थे और फारसी भाषा के जानकार थे, लेकिन हिंदी का प्रचार-प्रसार और लोगों को अक्षर ज्ञान कराने के लिए पुस्तक का प्रकाशन किया था। उनके पिता का नौ सितंबर वर्ष 1962 को निधन हो गया था। परिवार में तीन पुत्र वीरेंद्र कुमार, सुरेंद्र कुमार (दोनों स्वर्गवासी) और महेंद्र कुमार हैं। उनके एक पोते की प्रिंटिंग प्रेस थी, जबकि दो पोते आशेंद्र कुमार सक्सेना अधिवक्ता और डॉ. स्वतंत्र अग्रवाल वरिष्ठ दंत रोग विशेषज्ञ व कोठीवाल डेंटल कॉलेज के प्राचार्य हैं।

इन प्रदेशों में होती थी किताब की आपूर्ति

मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डा. मनोज रस्तोगी ने बताया कि भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार में काले-काले पन्नों वाली इस पतली सी पुस्तिका का योगदान हिंदी प्रसार को समर्पित किसी भी व्यक्ति या संस्था की तुलना में सबसे ज्यादा है। स्कूलों में भी पुस्तक पढ़ाई जाने लगी। जब किताब की आपूर्ति में परेशानी होने लगी तो बहुत से प्रकाशकों ने इस पुस्तक की हू-ब-हू नकल कर पुस्तकें प्रकाशित करना शुरू कर दिया था। दिल्ली, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब व अन्य प्रदेशों में किताब की आपूर्ति होती थी।

एक अभ्यर्थी ने लिखा कि मास्टर रामकुमार का कायदा

वर्ष 1951 में मुरादाबाद नगर में सब इंस्पेक्टर की परीक्षा थी। प्रतियोगियों से एक प्रश्न पूछा कि मुरादाबाद की सबसे प्रसिद्ध चीज क्या है। ज्यादातर अभ्यर्थियों ने कलई के बर्तन बताया, लेकिन एक अभ्यर्थी ने लिखा कि मास्टर रामकुमार का कायदा। इस जवाब से परीक्षक भी चकरा गया और जब उसने खोज शुरू की तो यह जवाब बिल्कुल सही मिला।

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