लखनऊ । लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा के बाद से राजनीतिक पार्टियां चुनावी मैदान में जमकर पसीना बहा रही है। भारतीय जनता पार्टी सत्ता में काबिज रहने के लिए 370 सीटें और एनडीए के लिए ‘400 पार’ सीटें जीतने का टारगेट सेट किया हुआ है, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए इंडिया गठबंधन बनाया है। इसके जरिए कांग्रेस फिर से दिल्ली की कुर्सी पर काबिज होने के लिए रणनीति बनाने में जुटी हुई है।

भाजपा और इंडिया गठबंधन का सबसे अधिक जोर यूपी में है। चूंकि यूपी से ही सत्ता पर काबिज होने का रास्ता साफ होता है। ऐसे अगर देखा यूपी में आजादी के बाद से अभी तक हुए चुनाव में जीत और हार के आकड़ों पर गौर किया जाए तो कांग्रेस की स्थिति चौकाने वाली निकल कर आती है। जिस कांग्रेस पार्टी ने 1947 से 1989 के बीच लगभग चार दशक तक उत्तर प्रदेश पर राज किया, वह कांग्रेस अब लोकसभा की केवल एक सीट पर सिमट गई है।

इन सीटों पर कांग्रेस ने 1984 के आम चुनाव में आखिरी जीत हासिल की थी

जानकारी के लिए बता दें कि प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में से 38 सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस आखिरी बार 40 साल पहले जीती थी। उल्लेखनीय है कि, 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस एकमात्र रायबरेली सीट जीत पाई थी। 403 सीटों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में उसके केवल दो विधायक हैं। यह आकड़े हैरान कर देने वाले हैं।38 संसदीय सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस ने 1984 के आम चुनाव में आखिरी जीत हासिल की थी।

इन सीटों पर पिछले चार दशकों से कांग्रेस अपना करिश्मा दोहरा नहीं पाई। इन सीटों में सहारनपुर, कैराना, बिजनौर, पीलीभीत, अमरोहा, बुलंदशहर, संभल, हाथरस, आगरा, मैनपुरी, बदायूं,आंवला, हरदोई, इटावा, कन्नौज, मोहनलालगंज (सु0), लखनऊ, जालौन, हमीरपुर, बांदा, कैसरगंज, फूलपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर, अम्बेडकर नगर, बस्ती, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर, गोरखपुर, देवरिया, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर और राबर्टसगंज शामिल हैं। एटा सीट पर कांग्रेस को अंतिम जीत 44 साल पहले 1980 के आम चुनाव में मिली थी।

यूपी की इन लोक सभा सीटों पर भी कुछ ऐसा रहा हाल

यूपी में दो सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस आखिरी बार 1989 में जीती थी। ये सीटें सीतापुर और घोसी हैं। मिश्रिख (सु0) सीट पर उसे अंतिम जीत 1991 के आम चुनाव में मिली थी। बागपत संसदीय सीट पर वह 1996 में अंतिम बात जीत का स्वाद चख पाई थी। मुजफ्फरनगर, रामपुर और मेरठ सीट पर उसकी अंतिम जीत 25 साल पहले 1999 में हुई थी। 2004 के चुनाव में 20 साल पहले आखिरी दफा अलीगढ़, मथुरा, शाहजहांपुर, बांसगांव और वाराणसी सीटों पर जीती थी। इसके बाद उसकी हार का सिलसिला जारी है। जबकि कांग्रेस लगातार अपनी खोई जमीन को वापस लाने के लिए तमाम प्रकार के जतन अपनाई लेकिन उसमें उसे सफलता नहीं मिल पायी।

बीस सीटों पर 15 साल पहले कांग्रेस को मिली आखिरी जीत

बता दें कि मुरादाबाद, फिरोजाबाद, बरेली, खीरी, धौरहरा, उन्नाव, फर्रुखाबाद,कानपुर, अकबरपुर, बहराइच, झांसी, बाराबंकी, फैजाबाद, गोण्डा, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, श्रावस्ती, डुमरियागंज, महाराजगंज और कुशीनगर इन 20 सीटों पर कांग्रेस को अंतिम जीत 2009 के आम चुनाव में मिली थी। इस चुनाव में काग्रेस ने 18.25 फीसदी वोट हासिल कर कुल 21 सीटों पर कब्जा किया था। 1984 के आम चुनाव के बाद सीट जीतने के लिहाज से यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ अंतिम प्रदर्शन था। 2009 के आम चुनाव के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत और सीटें दोनों जमीन पर आ गए।

2014 और 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस का सबसे खराब रहा प्रदर्शन

आजादी के बाद से सबसे ज्यादा खराब प्रदर्शन कांग्रेस का अगर रहा तो वह वर्ष 2014 और 2019 में । 2014 के आम चुनाव में देश और प्रदेश में विपक्ष मोदी की आंधी में उड़ गया। इस चुनाव में कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी की मात्र दो सीटें जीती। उसका वोट प्रतिशत गिरकर 7.53 रह गया।वहीं लोकसभा चुनाव 2019 की बात की जाएग तो इस चुनाव में कांग्रेस एक सीट रायबरेली ही जीत सकी।

रायबरेली से कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी उम्मीदवार थी। हालांकि गांधी परिवार की गढ़ माने जाने वाली अमेठी सीट से राहुल गांधी चुनाव हार गए। राहुल गांधी को भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने 50 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से उनके गढ़ में हराया था। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 6.36 रह गया।

2009 में बनी नई संसदीय सीटों पर भी लचर प्रदर्शन

बता दें कि 2009 में परिसीमन के बाद उप्र में नगीना (सु0), गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, धौरहरा, अकबरपुर, फतेहपुरसीकरी, कौशाम्बी, संतकबीर नगर, श्रावस्ती, कुशीनगर और भदोही कुल 11 संसदीय सीटें अस्तित्व में आई। 2009 में नई सीटों पर पहली बार आम चुनाव हुआ। इनमें से चार सीटों कुशीनगर, श्रावस्ती, धौरहरा और अकबरपुर पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। इसके बाद 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा, सपा और बसपा इन सीटों पर जीती। कांग्रेस का दोबारा खाता नहीं खुला।

2024 के लोकसभा चुनाव में मात्र 17 सीटों पर लड़ रही कांग्रेस

यूपी में कांग्रेस के पास फिलहाल रायबरेली लोकसभा सीट है। इस बार यहां से सोनिया गांधी चुनाव नहीं लड़ रही हैं। अमेठी सीट 2019 में ही राहुल गांधी बीजेपी की स्‍मृति इरानी के हाथों गंवा चुके हैं। I.N.D.I.A. गठबंधन में शामिल कांग्रेस को सपा ने यूपी की 17 सीटें चुनाव लड़ने के लिए दी हैं। इनमें बांसगांव, सहारनपुर, देवरिया, प्रयागराज, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, मथुरा, सीतापुर, गाजियाबाद, बाराबंकी, फतेहपुर सीकरी, रायबरेली, अमेठी और कानपुर शामिल है। गाजियाबाद से कांग्रेस ने डॉली शर्मा को टिकट दिया है। वाराणसी से यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय खड़े होंगे। कानपुर से आलोक मिश्रा कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।

गठबंधन के सहारे कांग्रेस अब यूपी में ठोक रही ताल

बता दें कि कांग्रेस यूपी में इस कदर कमजोर है कि सभी सीटों पर वो चुनाव तक नहीं लड़ पाती। 2014 में कांग्रेस-रालोद का गठबंधन था। 2019 में कांग्रेस अकेले मैदान में थी। इस चुनाव में वो सारी सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतार सकी। कांग्रेस की उप्र में कमजोर हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2024 के आम चुनाव में वो सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वो भी सपा गठबंधन के सहारे। जबकि सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टी 63 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अब इस बार इन 17 सीटों में कितनी सीट कांग्रेस के खाते में जाती है यह तो आने वाला समय ही बताएंगा।

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