भदोही। प्राचीन काशी राज्य का एक हिस्सा आज का भदोही जनपद था जो बनारस स्टेट के जमाने में भी जिला था और कोढ़ जिसे आजकल हम ज्ञानपुर कहते हैं । इस जनपद का मुख्यालय था कालांतर में जब राज्यों का विलीनीकरण हुआ और भदोही को क्रमशः मिर्जापुर और बाद में वाराणसी में मिला दिया गया तब भी ज्ञानपुर तहसील मुख्यालय था जो बाद में 2 तहसीलों में विभाजित हुआ और भदोही को एक अलग तहसील बना दिया गया। इसी ज्ञानपुर कोढ़ के मध्य में एक शंकर का प्राचीन मंदिर स्थित है जिसका इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है यह मंदिर ज्ञानपुर नगर के मध्य में स्थित ज्ञान सरोवर के पश्चिमी किनारे पर पूर्वा विमुख स्थित है।

यहां कभी हुआ करता था विशाल जंगल

इतिहास बताता है कि उस समय यहां विशाल जंगल था आज भी उन जंगलों का अवशेष देखा जा सकता है जिसे आज सुंदरवन कहा जाता है इन्हीं जंगलों के बीच बावड़ी के रूप में आज का ज्ञान सरोवर स्थित था जिसमें स्नान करने से उस समय लोगों के कोढ़ दूर हो जाते थे उस समय गांव गिराव में जिसे कोड़ी कहा जाता था उसे गांव से बाहर कर दिया जाता था जो कोढ़ रोग से बाहर किए गए वह आकर इस जंगल में रहने लगे भोजन के रूप में जंगली वनस्पति खाते थे और इसी बावड़ी में स्नान करते थे। जिसको लेकर मंदिरों तैयारियां जोर-शोर चल रही है। जय बाबा बर्फानी ग्रुप द्वारा बार 20 फीट की प्रतिमा ज्ञान सरोवर के बीचोंबीच लगाईं जाएंगी एवं वाराणसी दशाश्वमेध घाट के तर्ज पर महाआरती एवं लाइट शो , भव्य सजावट का आयोजन किया जाएगा।

कोढ़ रोग से मुक्ति दिलाने के कारण इसका नाम रखा गया था कोढ़

इस बात का स्पष्ट प्रमाण तत्कालीन अभिलेखों में मिलता है कि इस बावड़ी में स्नान करने वाले कोढ़ रोग से मुक्त हो जाते थे इस बात का प्रचार धीरे-धीरे समूचे उत्तर प्रदेश और बिहार तथा मध्यप्रदेश तक हो गया लोग जो कोढ़ से पीड़ित थे लाभ प्राप्त करने लगे कोढ़ रोग से मुक्ति प्राप्त करने के कारण इस स्थान का नाम कोढ़

रखा गया बाद में गोपीगंज रेलवे स्टेशन का नाम भी कोढ़ रखा गया वही कोढ़ अब ज्ञानपुर के नाम से विख्यात है और गोपीगंज स्टेशन का नाम भी बदलकर ज्ञानपुर रोड कर दिया गया । भयानक कोढ़ रोग से मुक्ति का प्रचार प्रसार इतना बड़ा की तमाम राजे रजवाड़ों और जमींदारों का भी ध्यान उधर गया गंगापुर वाराणसी के जमींदार ठाकुर हरिहर सिंह ने इस बावड़ी का सुंदरीकरण कराया तथा एक कुएं का निर्माण कराया एवं उसी बावड़ी के किनारे एक विशाल शंकर जी के मंदिर का भी निर्माण कराया।

शिवलिंग की महिमा सिद्ध पीठ के रूप में जानी जाने लगी

कालांतर में वही बावड़ी ज्ञान सरोवर के नाम से विख्यात हुई और ठाकुर हरिहर सिंह के परिवार वालों ने उनकी स्मृति में मंदिर का नाम भी हरिहरनाथ मंदिर रख दिया हरिहर शंकर जी को भी कहा जाता है अतः यह नाम काफी प्रचलित हुआ और धीरे-धीरे यहां स्थापित शिवलिंग की महिमा सिद्ध पीठ के रूप में जानी जाने लगी आज भी दावे के साथ यह कहा जाता है कि जिसने यहां आकर भगवान भोलेनाथ के मंदिर में निरीक्षल भाव से जो मनोकामना कि वह अवश्य पूरा होता है।

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