भदोही। उत्तर प्रदेश में एक ऐसा जिला है जहां पर भगवान भोलेनाथ के अंश शेषनाग सावन के हर सोमवार को मंदिर में प्रकट होकर भक्तों को दर्शन देते है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग सावन के माह में यहां पर आते हैं। यह बात जानने के बाद आपको हैरानी जरूर हो रही होगी लेकिन यह एक कटु सच्चाई है। शेषनाग मंदिर में आते है और शिवलिंग को लपेट लेते है और फिर इसके बाद फन उठा लेते हैं। भक्तों को शेषनाग को देखने का सौभाग्य केवल सावन मास में ही देखने को मिलता है। इसलिए सावन माह में यहां आने के बाद शेषनाग का साक्षात्य दर्शन पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं।

यहां पर हजारों साल पुरानी है सूर्य की प्रतिमा

भदोही के हरियावं में स्थित बघेल छावनी समृद्ध इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। इस मंदिर में विशाल पीपल के वृक्ष का भी अपना एक इतिहास है।बताते चलें कि 15वीं शताब्दी में यहां आए बघेल राजवंशों की छावनी आज भी जिले में हैं। भदोही के हरियावं स्थित बघेल छावनी काफी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। यहां हजारों साल पुरानी सूर्य की प्रतिमा की सही उम्र आज भी कोई नहीं बता पाता। पुरातत्व विभाग के मुताबिक मूर्ति कोणार्क कालीन है। यह संभवतः एकलौती दुर्लभ सूर्य प्रतिमा है। यहां पर सावन के हर सोमवार को भोलेनाथ के अंश शेषनाग स्वयं प्रकट होते हैं।

मंदिर में विशाल पीपल के वृक्ष का भी अपना एक इतिहास

जिसको देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। शेषनाग दर्शन देने के बाद गायब हो जाते हैं। भदोही के हरियावं में स्थित बघेल छावनी समृद्ध इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। इस मंदिर में विशाल पीपल के वृक्ष का भी अपना एक इतिहास है। बघेल परिवार से जुड़ी ऋचा सिंह बताती हैं कि पहले पीपल के वृक्ष के पास ही सूर्य देवता का प्राचीन मंदिर बना हुआ था। लगातार विशाल हो रहे वृक्ष के स्वरूप के कारण मंदिर टूटने लगा। जिसके बाद उनके पति स्व. अजीत कुमार सिंह ने 1993 में एक नया मंदिर बनवाया। जिसका नाम सिद्धपीठ शिवायतन व सूर्य मंदिर रखा। ऋषभ के पिता ने मंदिर में पंचायतन मूर्तियों की स्थापना करवायी। जिसमें भगवान शिव, विष्णु, मां दुर्गा, श्रीगणेश और प्राचीन सूर्य देवता की प्रतिमा हैं।

यहां परिक्रमा करने पर आकार ओम का बनता है

बताया कि वैदिक शास्त्रों के अनुसार यह पंच देव ही प्रमुख है, शेष देवता इनके अंगीय हैं। खास बात यह है कि मंदिर जिस चबूतरे पर बनाया गया है। उसकी परिक्रमा ओमकार है, यानि परिक्रमा करने पर ओम का आकार बनता है।हजारों सालों से पुरानी इस मूर्ति में सूर्य पूरे मंडल के साथ हैं। इसमें छह देवता, दो अश्वनी कुमार और ऋषियों के साथ ही दो असुर भी हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य मंडल में यह सभी लोग होते हैं। यह इकलौती ऐसी दुर्लभ मूर्ति है। जिसमें सूर्य अपने मंडल के साथ विराजमान हैं। बताते हैं कि पूरे भारत में शायद ही कोई ऐसा स्थान होगा। जहां सूर्य देव की मूर्ति होगी।

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