अगर आपके परिवार में या आसपास कोई व्यक्ति लंबे समय से खांसी से जूझ रहा है, बार – बार बुखार की चपेट में आ रहा है, तो यह भी संभव है कि वह इन्फ्लूएंजा-ए के सब – टाइप एच 3 एन 2 की चपेट में है‌। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान के अनुसार यह वायरस पिछले 2-3 महीने से भारत भर में फैल रहा है। इससे सबसे ज्यादा श्वास रोग पीड़ित अस्पताल में भर्ती हो रहें हैं। श्वास रोग फैला रहे वायरस पर करीब से निगरानी रख रहे आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने बताया यह वायरस सभी जगह मिल रहा है। यह निगरानी देशभर में मौजूद 30 वायरस रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लैब के जरिए रखी जाती है।

मरीजों में यह देखने को मिल रहे लक्षण

जानकारी के अनुसार सीवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री इंफेक्शन ( सारी) के आधे मामले एच3 एन 2 में है। भर्ती हुए बिना इलाज ले रहे मरीजों में आधे इसी वायरस से पीड़ित हैं।डॉक्टरों की माने तो भर्ती होने वालों में 92 फीसदी मरीज बुखार ,86 फीसदी खांसी 27 फीसदी सांस लेने में दिक्कत से पीड़ित मरीज आ रहे है। दस प्रतिशत मामलों में ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत। फिलहाल कुल सात फीसदी को अाइसीयू में रखा जा रहा है। 16 फीसदी मरीजों में सांस लेते समय फेफड़ों में घरघराती की आवाज आती है। फेफड़े में सूजन व सांस की नली सिकुड़ने का संकेत और पांच से सात दिन में उतर जाते हैं मौसम खांसी और बुखार।

मौसम बुखार सामान्यतः उतरता है 5 से 7 दिन में

आईएमए के अनुसार मौसम बुखार सामान्यतः 5 से 7 दिन में उतरता है। अधिकतर का बुखार 3 दिन में भी उतारता है तो कुछ में खांसी 3 हफ्ते तक रह सकती है। दूसरी ओर एंटी- माइक्रोबियल रजिस्टेंस पर बनी समिति के अनुसार वायु प्रदूषण भी बढ़ते मामलों की एक वजह है। 15 से छोटे और 50 साल के बड़ी उम्र लोगों को प्रदूषण चपेट में ले सकता है, उन्हें श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में संक्रमण और बुखार आ सकता है।

अनावश्यक एंटीबायोटिक खाना तुरंत बंद करें: आईएमए

इस बीच, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी एंटीबायोटिक्स के अनावश्यक सेवन को तुरंत रोकने के लिए नागरिकों से कहा है। डाॅक्टरों को भी सलाह दी है कि केवल लक्षण के आधार पर मरीजों का इलाज करें , हर एक को एंटीबायोटिक देने की जरूरत नहीं है। सीमित के अनुसार एजिथोमाइसिन, अमोक्सिक्लेव।, एमोक्किसन ,नोरफ्लोक्सासिन, ओफ्लोक्सासिन, ओफ्लोक्सासिन, लेवोफ्लाक्सासिन का लोग बेतहाशा दुरुपयोग कर रहे हैं। इनका उपयोग आमतौर पर डायरिया व यूटीआई में हो रहा है। उचित जांच करवाएं बिना इन्हें लेने से और सेहत में सुधार आते ही बंद करने से सेहत को क‌ई दिक्कतें हो सकती है। एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस आ सकता है। इससे दवाओं की वास्तव में जरुरत होने पर मरीज पर काम नहीं करेंगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *