उत्तम शिक्षा व्यवस्था के लिए उत्तम शिक्षकों का होना बहुत ही जरूरी है। हमारे होनहार छात्र-छात्राओं को टीचिंग को एक प्रोफेशन profession के रूप में अपना कर देश के भविष्य को सुंदर बनाने में बहुमूल्य योगदान देना चाहिए। बाबा साहेब आंबेडकर का मानना था कि गरीब और जरूरतमंद लोगों तक शिक्षा की सुविधाएं पहुंचाना एक विश्वविद्यालय का मूलभूत कर्त्तव्य है। उनके अनुसार एक शिक्षण संस्थान को सभी वर्गों के विद्यार्थियों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। उक्त बातें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक दीक्षांत समारोह के दौरान कहीं।
द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि हमारे विश्विद्यालय द्वारा 50 प्रतिशत सीटों पर एससी एसटी के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। इस वर्ष विदेशी छात्रों की संख्या में इजाफा हुआ है। एनाईआरएफ रैंकिंग में भी सुधार हुआ है। विश्वविद्यालय में मियावाकी फारेस्ट और सप्ताह में एक दिन नो व्हीकल डे मनाते हैं। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सावित्री बाई फुले हॉस्टल के लिए 12 करोड़ रुपये दिए हैं। अभी कई और छात्रावास बनने हैं। विश्वविद्यालय में एससी एसटी स्टूडेंट्स के लिए यूपीएससी की निशुल्क कोचिंग की व्यवस्था की है।
स्वर्ण पदक विजेता मेधावियों को राष्ट्रपति ने किया सम्मानित
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर विश्विद्यालय के 10वें दीक्षांत समारोह में स्वर्ण पदक विजेता मेधावियों को सम्मानित किया। इस मौके पर राष्ट्रपति के साथ ही राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, कुलपति आचार्य संजय सिंह और कुलाधिपति एस बरतुलिया मंच पर मौजूद हैं। इस मौके पर कुलपति आचार्य संजय सिंह ने कहा कि हम भाग्यशाली महसूस कर रहे हैं कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हमारे बीच मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद हैं। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मंत्री योगेंद्र उपाध्याय को भी आगमन के लिए धन्यवाद। उन्होंने सभी पदक विजेताओं व डिग्री धारकों को भी बधाई दी है।
बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन में जितना संघर्ष था, उतनी ही उनकी उपलब्धियां भी थी। बचपन से ही मेधावी छात्र रहे, डॉक्टर आंबेडकर ने अनेक चुनौतियों और बाधाओं का सामना करते हुए, देश-विदेश में श्रेष्ठ शिक्षा हासिल की।आज भारत, विश्व का तीसरा सबसे बड़ा Start-up ecosystem वाला देश है। सभी शिक्षण संस्थानों, विशेष रूप से विश्वविद्यालयों और तकनीकी शिक्षण संस्थानों, से यह अपेक्षा है कि वे इस ecosystem का भरपूर लाभ उठाएं और अपने विद्यार्थियों को research और innovation के लिए प्रोत्साहित करें। इस मौके पर राष्ट्रपति ने कहा कि मैं महान कवि मैथिलीशरण गुप्त जी की कविता की कुछ पंक्तियां कहती हूं नहीं विघ्न-बाधाओं को हम, स्वयं बुलाने जाते हैं, फिर भी यदि वे आ जायें तो, कभी नहीं घबराते हैं। मेरे मत में तो विपदाएं, हैं प्राकृतिक परीक्षाएं, उनसे वही डरें, कच्ची हों, जिनकी शिक्षा-दीक्षाएं।
सरकार चाहती है कि कोई भी समाज पीछे नहीं रहेः राष्ट्रपति
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि यूपी में 25 करोड़ लोग निवास करते हैं, लेकिन क्यों सिर्फ बुक्सा समाज को ही बुलाया गया है। क्योंकि सरकार चाहती है कि कोई भी समाज पीछे न रह जाए। सभी आगे बढ़ें। हर बच्चे को पढ़ने की सुविधा मिले, शिक्षित व आर्थिक रूप से उन्नति करें। बुक्सा समाज शिक्षा, सामाजिक व आर्थिक समेत सभी क्षेत्रों में पीछे है, सरकार चाहती है कि वे भी कदम से कदम मिलाकर चलें। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को सूबे की बुक्सा जनजाति के लोगों को वनाधिकार पत्र वितरित कर उनसे संवाद के दौरान यह बातें कहीं।
राष्ट्रपति ने कहा कि मैं राज्यपाल थी तो सरकार से बोली कि जनजातियों को आगे लाना है। उनके लिए बहुत काम हो रहे हैं। स्कूल-कॉलेज खुल रहे हैं। शुरुआत अच्छी हुई है तो सारी समस्याओं को दूर भी किया जाएगा। अभी टेक्नोलॉजी का जमाना है। विडियो से जाना कि छात्राओं के लिए हॉस्टल है, घर से आने-जाने वालों के लिए साइकिल की व्यवस्था कराई गई। मुसहर जनजातिय के लोग जंगलों में रहते हैं। उनकी खुद की जमीन न होने से वे पीएम आवास योजना से नहीं जुड़ पाते। उन्होंने समाज के लोगों को नसीहत दी कि सीखना बहुत जरूरी है। बेटा हो या बेटी, दोनों को पढ़ाना चाहिए।
आप भी कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे
राष्ट्रपति ने कहा कि आपको अपना पारंपरिक कार्य (खेती-बाड़ी, पशुपालन) भी करते रहना चाहिए। आर्थिक उन्नति के लिए सरकार सहयोग देती है। बेहतर के लिए हमें प्रयास करना चाहिए और प्रयास करने से ही आगे बढ़ सकते हैं। आपका भविष्य उज्ज्वल होगा, आपको भी कदम से कदम और कंधे से कंधे मिलाकर बढ़ना चाहिए। यूपी के बिजनौर में वनाधिकार अधिनियम के तहत 21 लोगों को वन भूमि पर पट्टे दिए गए हैं। इसमें से 5 लोगों को राष्ट्रपति ने वनाधिकार पट्टा अभिलेख के प्रमाण पत्र दिए। बाला पत्नी श्री चिरंजी, धन सिंह, शिव सिंह, वीरेंद्र व वीरमती के स्थान पर पति पारेन ने प्रमाण पत्र प्राप्त किए। बुक्सा जनजाति की प्रतिनिधि सीमा (ग्राम प्रधान, बावन सराय) व धन सिंह ने अपनी बातें भी रखीं।